जांच समिति ने इसे भी आश्चर्यजनक माना है कि अनुविभागीय अधिकारी ने 180 एकड़ संरक्षित वनभूमि निजी व्यक्ति के नाम लगाने से पहले यह जांचना भी जरूरी नहीं समझा कि 1956-57 से अधिकार का दावा करने वाला पक्षकार सन 2003 में ही क्यों प्रकट हुआ? समिति ने यह भी कहा है कि ऐसे मामलों में क्षेत्राधिकार वन व्यवस्थापन अधिकारी के पास होता है, अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) के पास नहीं।